भोपाल शहर में अनेक स्थानों पर शहीद हेमू कालानी के बलिदान दिवस पर उनको श्रद्धांजलि देते हुए उनके बलिदान को याद किया गया। भोपाल के कुछ युवा उनके जीवन पर आधारित नाटक में शहीद की भूमिका भी निभा चुके हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इस अमर शहीद के सगे छोटे भाई के मुंह से भी एक अवसर पर हेमू की शहादत की दास्ताँ मैंने सुनी है। आज भी मुंबई में इस कालानी परिवार से मिलकर अहसास होता है कि यह गौरन्वान्वित कालानी परिवार किस तरह समाज सेवा के मार्ग का अनुसरण कर रहा है। यह बहुत कम लोगों को जानकारी है कि भारत की स्वतंत्रता के लिए शहीद अनेक नौजवानों के निकट परिजन आज भी बेहद सादी जिंदगी जीते हैं। ऐसे परिवार सरकार से किसी सहायता की आशा नहीं करते। इन परिवारों को आज भी नाज़ है कि उनके परिवार से कोई नौजवान देश की आजादी के लिए शहीद हुआ। मुंबई के चेम्बूर इलाके में ऐसा ही एक परिवार है - कालानी परिवार जिसे कभी भी अवसरों पर शासन के प्रतिष्ठापूर्ण कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं किया जाता। महाराष्ट्र सरकार क्या इन परिवारों को कम से कम साल में सिर्फ दो दिन गणतंत्र दिवस और आजादी की सालगिरह के दिन ही सही सम्मान देगी ? मध्य प्रदेश में ऐसी परम्परा है। मैंने गत सितम्बर महीने में इमुंबई में कालानी परिवार से भेंट की। हम इतिहास के पन्ने पलटें तो ज्ञात होगा कि किस तरह ब्रिटिश सरकार ने युवा क्रन्तिकारी हेमू कालानी को 21 जनवरी 1943 को सिंध प्रान्त के सक्खर कारावास में फांसी पर लटका दिया था। तब हेमू की आयु सिर्फ उन्नीस वर्ष थी। उस कालखण्ड को याद करते हुए हेमू के छोटे भाई श्री टेकचंद कालानी (बयासी बरस ) और उनकी पत्नी श्रीमती कमला कालानी बताते हैं कि हेमू भैया बचपन से क्रांन्तिकारी गतिविधियों में शामिल रहे। इन कार्यो की घर पर भी पूरी जानकारी नहीं देते थे। वे शहीद भगत सिंह की शहादत से छोटी उम्र से ही प्रभावित थे। अंग्रेजों के लिए मन में तीव्र क्रोध था जो अकसर बातचीत में जाहिर होता था। एक दिन एक रेलगाड़ी के फौजी साजो सामान लिए बलूचिस्तान के क्वेटा के लिए जाने की बात पता चलते ही हेमू कुछ साथियों के साथ रेलगाड़ी पलटने की योजना बनाकर घर से निकले। यह रेलगाड़ी 23 अक्टूबर 1942 को निकलनी थी ,तय समय पर साहसी देशभक्तों की मण्डली चल पड़ी सर पर कफ़न बांधे। उस दिन हेमू बहुत बैचैन थे। गोरे सत्ताईयों के लिए नफरत का भाव था हेमू के मन में। अक्सर परिवार में भी उनकी ऐसी अभिव्यक्ति सुनने को मिलती रहती थी। उस दिन घटना को अंजाम देने के लिए चल पड़े देश के दीवाने। रेल पटरियों के पास पटरियां उखाड़ने के पहले एक सिपाही की नजर अचानक ही इन देशप्रेमियों नौजवानों पर पड़ जाती है । फिर मचता है सिपाहियों का खूब शोर और दूसरे सिपाही भी तत्काल वहां आ पहुंचते हैं । श्री टेकचंद जी कुछ पल रूककर अपनी बात आगे बढ़ाते हैं। वृतांत बताते उनकी आँखें नम हो जाती हैं। वे बताते हैं कि सिपाही नजदीक आते हैं और हेमू अपने दोस्तों को वहां से निकल जाने का इशारा करते हैं। खुद अकेले ही खुद को सिपाहियों के हवाले कर देते हैं। फिर हेमू को जेल में डाल दिया जाता है । मुकदमा चलता है और अंततःउन्हें मृत्यु दंड का फैसला सुनाया जाता है । कोर्ट के उस फैसले से हेमू बिलकुल भी व्यथित नहीं थे। उनके आखिरी शब्द थे -आप लोग मेरी मौत पर रोना नहीं ,मैं पुनर्जन्म लूंगा ,हमारा देश जल्द ही आजाद हो रहा है। टेकचंद जी ने यह भी बताया कि जेल में अनेक यातनाएं सहने के बाद भी हेमू का वजन बढ़ गया था ,मतलब उनको नजदीक आ रही मौत की घड़ी से लेश मात्र भी भय नहीं था। हेमू से जब कभी परिवार के लोग उसके विवाह की बात करते ,हेमू बात को टाल देते ,कहते "करूँगा शादी और आप लोग देखना कि कितने सारे लोग आएंगे मेरी शादी में। " टेकचंद जी यह बात बताते बहुत भावुक हो जाते हैं। कुछ पल खामोश रहने के पश्चात टेकचंद जी कहते हैं "हम जीकर भी हार गए ,भाऊ मरकर भी अमर हो गए।" कुछ मिनिट के विराम के बाद आखिरी में टेकचंद जी कहते हैं हम गौरवान्वित हैं कि देश में संसद सहित अनेक शहरों में हेमू की प्रतिमा स्थापित है ,उनके नाम पर संस्थाओं के नाम भी रखे गए हैं और अनेक लोग घरों में बच्चों का नाम हेमू रखते हैं। हेमू को सदियाँ याद रखेंगी। मुम्बई में चेम्बूर में हेमू कालानी कालेज के संचालन के साथ ही कालानी परिवार गरीब़ों को भोजन करवाने और आयुर्वेद के प्रचार जैसे काम कर रहा है . अनेक इतिहासकार और उस दौर के स्वतंत्रता सेनानी बताते हैं जब हेमू को जेल में डाल दिया गया और उन पर ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ने का षड्यंत्र रचने का मुकदमा चला और बाद में फिर उन्हें जब फांसी देने का निर्णय सुनाया गया तब भी हेमू तनिक भी विचलित नहीं थे। हेमू की अंतिम यात्रा में उनकी क़ुरबानी को सम्मान देते हुए सक्खर शहर की सड़कें लोगो से पट गई थीं। उस दिन सिर्फ सड़कें सिर्फ स्वतंत्रता प्रेमियों से भरी हुईं थीं. जब हेमू की अर्थी उठी तो मानो शहीद की बारात चली हो ,जैसा हेमू इसी अंतिम यात्रा को बारात की संज्ञा देते हुए अपनी भावनाएं व्यक्त किया करते थे। आज हम ऐसे शहीदों की बदौलत आजाद हैं। नेत्र नम हो जाते हैं ऐसे वीरों को याद करते हुए।
० अशोक मनवानी
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