. हिंदी को हिन्दुतानी बनाकर ही लहरा सकेंगे
पताका 0 अशोक मनवानी हाल ही में भोपाल में हिंदी सम्मेलन का विश्व स्तरीय आयोजन हुआ है।हिंदी के संबंध में बहुत विस्तार से चर्चा हुई।सार्थक संवाद में शामिल प्रतिनिधि इस विषय पर भी बातचीत करते नजर आए कि यदि हिंदी में यदि सीमित संख्या में और आवश्यकता के मुताबिक अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश हो तो यह हिंदी की ख्याति बढ़ाने में सहयोगी होगा। इससे हिंदी और मजबूत और लोकप्रिय होगी। क्या आप टेबिल , पेन को आज मेज या कलम कहते हैं, जवाब है , नहीं। तो फिर इसकी वकालत क्यों होना चाहिए कि हिंदी शुद्ध रहे। क्या हिंदी की पवित्रता को अन्य भाषाओं से कोई खतरा है ? उत्तर है - बिलकुल कोई खतरा नहीं है। दूसरे शब्द हिंदी की प्रतिष्ठा में वृद्धि ही करेंगे। मेरा भी यही मानना है कि क्या बाइक का उपयोग अधिक अच्छा नहीं फटफटी से। क्या वाशरूम बेहतर नहीं बाथरूम से। बाथरूम तब जाते हैं जब लघुशंका के लिए जाना हो, यह प्रयोग भी गलत ही होता रहा है बरसों से । यदि समय के साथ सभ्यताएं बदलती हैं तब भाषा के परिवर्तन स्वीकार्य क्यों न हों। हमारे देश की राजभाषा और राष्ट्रभाषा देश की लगभग आधी आबादी की मातृभाषा भी है । वैधानिक प्रावधानों के बाद भी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग की अनिवार्यता को लागू नहीं किया जा सका है । कहने को राजभाषा के समर्थन में खूब नारे लगाए जाते हैं । इस रस्मी कार्यवाही में राजभाषा प्रेमियों का उत्साह देखते ही बनता है । अफसोस तब होता है जब इस उत्साह की बिदाई होती है । हर साल सितंबर महीने में उमड़ी भावना अक्टूबर महीना शुरु होते ही दफन हो जाती है । नमस्कार की जगह फिर हलो-हाय शुरु हो जाती है । दफ्तरी कार्यो से लेकर बोलचाल तक पूरा वातावरण अंग्रेजी मय हो जाता है । ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी विवशता के कारण महीना-पंद्रह दिन हिंदी में बातचीत और कार्य करने की जहमत उठानी पड़ी हो । हास्यास्पद यह है कि इस प्रक्रिया में शामिल लोग शुद्ध हिंदी की वकालत बहुत जोर शोर से करते हैं और फिर बाद में अंग्रेजी के गुलाम बन जाते हैं। इससे अच्छा है ऐसे भाषाई कट्टरवाद फैलाने की बजाय सर्वमान्य हिंदी के पक्ष में कार्य किया जाए। भारतीय भाषाओं का उद्गम संस्कृत से हुआ। यदि हिंदी को समृद्ध बनाने वाले शब्द इन भारतीय भाषाओं से लिए जाएँ तो कोई अनुचित नहीं। गुजराती का कोई वांदा नहीं मतलब कोई चिंता की बात नहीं , मध्य प्रदेश , राजस्थान और महाराष्ट्र के अनेक इलाकों में बोला जाता है। मराठी का माहिती अर्थात सूचना या जानकारी मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रयुक्त होता है। यही नहीं उत्तरप्रदेश की जबान या वहां बोली जाने वाली हिंदी में शामिल कई शब्द मध्य प्रदेश के सागर , ग्वालियर , रीवा और अन्य जिलों की क्षेत्रीय बोलियों में आकर सर्वमान्य हो गए हैं। एक समय था जब आजादी के आंदोलन में हिंदवी का खूब इस्तेमाल हुआ। ब्रज ,अवधी बोलियों ने हिंदी की ताकत और सौंदर्य को बढ़ाया। अनेक उर्दू भाषी या मुस्लिम शायरों ने इन बोलियों में कालजयी साहित्य रचा जिसकी विस्तृत व्याख्या यहाँ संभव नहीं। ऐसी हिंदी से भला किसे अनुराग नहीं होगा। हिंदी सिनेमा पर यह इल्ज़ाम लगाया जाता है कि हिंदी की टांग तोड़ने का काम किया है। यह आंशिक सत्य है। यह बात तथ्य भी उतनी ही अहम है कि हिंदी सिनेमा ने मिश्रित हिंदी का सुन्दर प्रयोग भी किया। आज हजारों हिंदी गीत सिर्फ और सिर्फ मिली -जुली हिंदी की बदौलत जबान पर बरबस आ जाते हैं। उन्हें गाने - गुनगुनाने से किसी को गुरेज़ नहीं।
हमारे कार्यालयों में जिस हिंदी का उपयोग हो रहा , वह बहुत प्रशंसनीय नहीं है। यहां हिंदी की गरिमा खंडित कर दी गई है। ड्राफ्ट के स्थान पर प्रारूप , फाइल के स्थान पर नस्ती और छोटे दंड के स्थान पर लघु शास्ति का इस्तेमाल अजीब भी लगता है। दर असल भारत सरकार ने राजभाषा नीति में अठारह बिंदुओं को शामिल किया है । यह दस्तावेज सभी कार्यालयों को भेजा गया है । इनका पालन करने के फेर में राजभाषा का स्वरुप बिगाड़ा जा रहा। हिंदी को उसका वास्तविक सम्मान उस दिन हासिल हो जाएगा जब हम कुछ उदार मन से अनेक भाषाओँ के सम्प्रेषणीय शब्द हिंदी में समाहित कर लेंगे। इसकी हमारे देश के सभी राज्यों में आवश्यकता है । वर्ष 1968 में संसद ने राजभाषा संकल्प पारित किया था जिसके अनुपालन में केंद्रीय गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग हर साल एक वार्षिक कार्यक्रम जारी करता है । हाल ही जारी पत्र में यह भी कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी की सहूलियतों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करते हुए हिंदी में कामकाज बढ़ाया जाए । अब हिंदी के कई फोन्ट उपलब्ध हैं। यूनिकोड कंप्यूटर पर राज कर रहा है। लेकिन सच तो यह है कि हिंदी को बहुत इज्जत की दरकार है अभी भी। हिंदी की पताका शान से तभी लहराएगी जब वह और भाषाओं के शब्दों से श्रृंगारित भी की जाए। यह भी जरुरी है कि सरकारी विभाग, वैज्ञानिक और तकनीकी साहित्य हिंदी में तैयार करने के लिए जरुरी उपाय करें । राजभाषा से जुडे अधिकारियों को विभागीय कार्यो से अच्छी तरह परिचित कराया जाए ताकि वे अपना दायित्व बेहतर ढंग से निभा पाएं । सभी विभाग अपने विषयों से संबंधित संगोष्ठियां सरल हिंदी में करें । इसके अलावा राजभाषा संबंधी आदेशों का अनुपालन दृढ़तापूर्वक किया जाए । किसी अधिकारी की और से जानबूझकर की गई अच्छी हिंदी की अवहेलना पर अनुशासनात्मक कदम उठाए जाएं । यह खेदजनक है कि संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट के पांचों खंडों पर जारी किए गए आदेशों का मंत्रालयों, विभाग और कार्यालयों ने पूर्ण अनुपालन नहीं किया। यह पालन अभी भी अपेक्षित और प्रतीक्षित है । सहज , बोधगम्य और लोकप्रिय हिंदी दफ्तरों में सम्मान हासिल करेगी तब एक बड़ी आबादी तक इसकी गूँज जाएगी। इसलिए अन्य भाषाओं के फूल हिंदी के गुलदस्ते की सजावट के लिए बेहद मुफीद हैं , अभिशाप का तो सवाल ही नहीं उठता।
हिंदी जन - जन की भाषा है और राष्ट्र की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है इसलिए सिर्फ यह न हो कि हिंदी को कठिन , संस्कृत निष्ठ बनाकर सम्मानीय मान लिया जाए बल्कि होना यह चाहिए कि भारतीय भाषाओं को सम्मान देते हुए राजभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी को पर्याप्त बढ़ावा मिले। हिंदी को सही अर्थो में सम्मान देने के लिए सम्पूर्ण समाज में आवश्यक वातावरण निर्मित किया जाए। यह भी हो कि शासकीय और निजी कार्यालयों में बढ़ावा देने के लिए हिंदी में अच्छा साहित्य भी उपलब्ध कराया जाए । जाने - माने साहित्यकारों की कृतियाँ कांच की अलमारी से झांकते हुए कहें कि हमें पढ़ डालो। प्रेरणा ही नहीं दिखाई देती कहीं अभी तो। प्रत्येक कार्यालय में पत्र पत्रिकाओं के जरिये सरल हिंदी का प्रचार-प्रसार हो। अधिकारियों, कर्मचारियों में हिंदी को सम्मानित करने की दिशा में कोई जोश ही नहीं। उनमें अन्य शासकीय कार्यो की तरह समझ में आने वाली हिंदी का उपयोग बढ़ाने की स्वत:स्फूर्त भावना होना चाहिए । सरल हिंदी का उपयोग और हिंदी दिवस आयोजन भी किसी विवशता से वशीभूत होकर न किए जाएं ।
मध्यप्रदेश में अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की शुरुआत हो गई है । देश में यह अनूठी पहल है । पीएच डी के लिए विद्या वारिधि जैसे शब्द का प्रयोग होते देखना सुखद है । आने वाले कुछ साल में यह शब्द और राज्यों तक जा पहुंचेगा ,यह यकीनी तौर पर मान लीजिए। मध्यप्रदेश के इस विश्वविद्यालय की तर्ज पर अन्य प्रदेशों में भी विश्वविद्यालय प्रारंभ किए जाने चाहिए । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस तरह हिंदी के पक्ष में खड़े हैं उनके प्रयास उन्हें स्वतंत्र भारत के प्रमुख हिंदी हितैषी राज नेताओं में शुमार करते हैं। इस तरह के कार्य और प्रयास आजादी के बहुत पहले स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में हिंदी सम्बोधन से और आजादी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने किये हैं। श्री राजेंद्र माथुर ने मध्य भारत में हिंदी को स्थापित किया। श्री प्रभाष जोशी ,मुलायम सिंह यादव और वेद प्रताप वैदिक के प्रयास भी कम अहमियत नहीं रखते। दरअसल श्री शिवराज सिंह चौहान जी ने हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित करवा कर लगभग उसी तरह के ऐतिहासिक महत्व के कार्य की शुरुआत की है जिस तरह हिंदी के बहु प्रसारित अखबारों ने अनेक वर्ष के प्रयासों से । उनकी इस सिलसिले में खुलज दिल से सराहना की जानी चाहिए।
लेखक वर्ग के साथ ही व्यापारी हिंदी सेवी भी सम्मान के पात्र हिंदी दिवस पर कुछ लेखक पुरस्कृत हो जाते हैं । समाज के अनेक ऐसे वर्ग जो हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ाने का कार्य निरंतर कर रहे हैं उन्हें भी हिंदी दिवस पर सम्मानित किया जाना चाहिए । उदाहरण के लिए ऐसे व्यवसायी जो संस्थानों के हिंदी नाम जैसे संस्कृति , काव्या , परिधान, श्रीमती साड़ी संग्रह , कलानिकेतन. आदि उपयोग में लाकर उन्हें लोकप्रिय बनाने का कार्य करते हैं । दरअसल सरल हिंदी के राजदूत और प्रचारक अनेक उद्यमी और व्यवसायी भी हैं।
राष्ट्रभाषा के प्रति युवा वर्ग का दृष्टिकोण वैश्वीकरण और बाजार की ताकतों से भी राष्ट्रभाषा हिंदी की अवमानना देखने के दृश्य सामने आते हैं । युवा वर्ग पाश्चात्य जीवन शैली का अनुसरण करते हुए हिंदी की उपेक्षा का अनुचित कार्य कर बैठते हैं । उन्हें मॉल संस्कृति, फैशन और बातचीत के आधुनिक लहजे का इस्तेमाल करते हुए यह स्मरण नहीं रहता कि सबसे पहले वे हिंदुस्तानी हैं और हिंदी उनकी राष्ट्रभाषा है । यदि युवा वर्ग हिंदी के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण का परिचय दे तो भारत में हिंदी की प्रतिष्ठा पूर्ण स्थिति बन सकती हैं ।
सरल हिंदी की पताका लहराते हुए सिर्फ हिंदी दिवस पर सक्रिय दिखने वाले मित्रों से यही कहना चाहता हूं कि हिंदी को रोजाना के व्यवहार और जीवन शैली में शामिल करें । कितना अच्छा हो यदि बात-बात में सॉरी, एस्क्यूजमी और थैक्यू कहने की बजाए धन्यवाद, शुक्रिया, आभारी हूं, क्षमा करेंगे आदि शब्दों का प्रयोग किया जाए । बोलचाल की हिंदी में समाहित अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द हिंदी को सशक्त बनाते हैं । यह कोशिशें हिंदी के लिए आशीर्वाद से कम नहीं।
(लेखक सात हिंदी सिंधी पुस्तकों के लेखक हैं )
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