एक सुनहरे दौर का चला जाना पच्चीस दिसम्बर के दिन सुबह ये खबर आई कि मुंबई में वरिष्ठ अदाकारा साधना जी नहीं रहीं। एक पल को यकीन ही नहीं हुआ। उन्हें कोई कैंसर नहीं था , जैसा अधिकांश टी वी चैनल बताते रहे। मैं साधना जी पर किताब लिखने के सिलसिले में उनसे जब भी मिला , भले कुछ क्षण मिले हों बातचीत के, हमेशा खुश और पॉजिटिव - ऊर्जा से ओत - प्रोत देखा। आम तौर पर वे परिचित , निकट रिश्तेदारों और खास प्रशंसकों से ही मिलती थीं। मैंने ट्रेन से तुरंत भोपाल से मुंबई रवाना होने का कार्यक्रम बना लिया , रिजर्वेशन न मिलने पर सोलह घंटे लम्बी बस यात्रा का विकल्प चुनना पड़ा। शनिवार की सुबह सांताक्रुज के राम कृष्ण मार्ग के संगीता नामक बंगले के ग्राउंड फ्लोर बी - वन पहुँच गया। दिवंगत अभिनेत्री साधना जी के निवास पर सांताक्रुज इलाके में ऐसी भीड़ पहले कभी नहीं देखी गई। साधना जी चूँकि कभी जनता के बीच नहीं आती थीं इसलिए शायद उनके दीदार को तरसते उनके प्रशंसक बहुत बेचैन और बेताब थे। व्यवस्था देख रही शाइना एन सी और लोकल पुलिस किसी तरह उस हुजूम को समझाने और उनके घर के भीतर आने से रोकने में लगे थे। यहाँ से ग्यारह बजे साधना जी की आखिरी यात्रा निकली। अर्थी पर लेटी साधना जी का चेहरा उसी साधना कट हेयर स्टाइल के साथ दिखाई दिया , आँखों पर चश्मा चढ़ा था। एक जिंदगी पूरी। एक अलग दुनिया की यात्रा के लिए तैयार। देश - विदेश में जिसने हिंदी सिनेमा में लगातार अपनी विशेष स्थिति बनाकर करोड़ों प्रशंसक पैदा किए। दस फैशन चलाए। सिर्फ साधना कट नहीं। जान लीजिए नौ और फैशन - आँखों में तिरछा काजल , शरारा , गरारा , टाइट और बिना बाहों वाला कुरता , चूड़ीदार सलवार या पायजामा , कानों में बड़े बाले , गले में दुपट्टा , बालों के आकर्षक जूड़े और सबसे खास उनकी सौम्य मुस्कान। याद दिलाएं आपको कि एक मुसाफिर एक हसीना और वो कौन थी जैसी फिल्मो की लोकप्रियता का यह आलम था कि उस समय की कॉलेज गर्ल्स ने हंसना छोड़ दिया था , बस हल्की मुस्कान चेहरों पर होती थी। भारतीय सिनेमा का अहम दौर रहा साधना जी जैसी अभिनेत्रियों की वजह से। लता जी मानती हैं कि साधना की तरह कई अहिन्दी भाषी अदाकाराओं का हिंदी उच्चारण अद्भुत था। राष्ट्रभाषा के लिए उनका प्रेम प्रशंसनीय है।
साधना जी के शव वाहन के पीछे गाड़ियों की लम्बी कतार थी। एक. दो टी वी चैनल्स जो बता रहे थे की बॉलीवुड की कोई बड़ी हस्ती साधना जी के अंतिम दर्शन को नहीं पहुंची , यह असत्य था। वेटेरन एक्टर संजय खान , संवाद लेखक निर्माता सलीम खान , फिल्म इंतकाम और एक फूल दो माली में साधना जी के नायक रहे संजय खान , चरित्र अभिनेता और साधना जी के ख़ास प्रशंसक रजा मुराद , काबिल गायक , द्घोषक , अभिनेता अन्नू कपूर प्रसिद्द कोरियोग्राफर सरोज खान जिन्हें पहली बार साधना जी ने गीता मेरा नाम फिल्म बनाने पर बतौर कोरियोग्राफर सम्मानित किया , पूर्व मिस इंडिया पूनम चंदीरमानी सिन्हा ( शत्रुघ्न सिन्हा जी की पत्नी और पूर्व मिस इंडिया ) साधना जी के नजदीकी श्री सुरेश लालवानी , रमेश सिप्पी जो पहले बतौर निज सहायक भी कुछ समय काम कर चुके हैं , आने- जाने वालों से बात करते हुए सक्रिय थे। इस बीच वेटेरन एक्ट्रेस और साधना जी की सहेली वहीदा रहमान और आशा पारेख जी भी आती हैं - बेहद ग़मगीन थीं दोनों। मुझे एक सिने प्रेमी धर्मेन्द्र पाठक भी मिले जो अहमदाबाद खास तौर पर आए थे , वे शांत और मायूस मेरे पास बैठे थे। मुंबई के ओशिवारा में जहां हिन्दू शमशान भूमि का बोर्ड लगा हुआ था, शमशान घाट की बाऊन्ड्री वॉल के बाहर ही टी वी वालों ने ओबी वेन्स लगा रखी थीं। अंत्येष्टि की रस्म के लिए रिश्तदारों में साधना जी के दिवंगत पति आर के नैयर के भाई केवल नैयर , भतीजी गीता साधना जी की शिमला निवासी ननद सोनिया , साधना जी के कसिन विजय भावनानी उनके बेटे यशीष भावनानी मौजूद थे। वहीं जानी मानी उद्घोषिका तबस्सुम , करण जौहर की माँ श्रीमती हीरू जौहर लघु फिल्म निर्माता टी मनवानी आनंद, बीते दौर की अभिनेत्री शम्मी , दीप्ति नवल आदि मौजूद थे। पंडित जी मन्त्र आदि पढ़े। आधा घंटे के बाद अपने दौर की इस विलक्षण अभिनेत्री का पार्थिव शरीर विद्युत शव दाह कक्ष में ले जाया जाता है। सभी मौजूद लोगों की आँखों से आसुंओ की धारा बह निकलती है। बाद में साधना जी के बंगले पर फिर से हेलेन जी और सारिका और अन्य कई अभिनेत्रियों का आना- जाना लगा रहता है। मैं नम आंखों से लौटता हूं । साधना जी के दौर को याद करते हुए । साधना जी को मरणोपरांत ही सही पद्म श्री या पद्म भूषण दिया जाना चाहिए। उनके अभिनय के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान और नए प्रतिमान रचकर फिल्म उद्योग की दिशा बदलने के लिए।
०अशोक मनवानी ।
साधना जी के शव वाहन के पीछे गाड़ियों की लम्बी कतार थी। एक. दो टी वी चैनल्स जो बता रहे थे की बॉलीवुड की कोई बड़ी हस्ती साधना जी के अंतिम दर्शन को नहीं पहुंची , यह असत्य था। वेटेरन एक्टर संजय खान , संवाद लेखक निर्माता सलीम खान , फिल्म इंतकाम और एक फूल दो माली में साधना जी के नायक रहे संजय खान , चरित्र अभिनेता और साधना जी के ख़ास प्रशंसक रजा मुराद , काबिल गायक , द्घोषक , अभिनेता अन्नू कपूर प्रसिद्द कोरियोग्राफर सरोज खान जिन्हें पहली बार साधना जी ने गीता मेरा नाम फिल्म बनाने पर बतौर कोरियोग्राफर सम्मानित किया , पूर्व मिस इंडिया पूनम चंदीरमानी सिन्हा ( शत्रुघ्न सिन्हा जी की पत्नी और पूर्व मिस इंडिया ) साधना जी के नजदीकी श्री सुरेश लालवानी , रमेश सिप्पी जो पहले बतौर निज सहायक भी कुछ समय काम कर चुके हैं , आने- जाने वालों से बात करते हुए सक्रिय थे। इस बीच वेटेरन एक्ट्रेस और साधना जी की सहेली वहीदा रहमान और आशा पारेख जी भी आती हैं - बेहद ग़मगीन थीं दोनों। मुझे एक सिने प्रेमी धर्मेन्द्र पाठक भी मिले जो अहमदाबाद खास तौर पर आए थे , वे शांत और मायूस मेरे पास बैठे थे। मुंबई के ओशिवारा में जहां हिन्दू शमशान भूमि का बोर्ड लगा हुआ था, शमशान घाट की बाऊन्ड्री वॉल के बाहर ही टी वी वालों ने ओबी वेन्स लगा रखी थीं। अंत्येष्टि की रस्म के लिए रिश्तदारों में साधना जी के दिवंगत पति आर के नैयर के भाई केवल नैयर , भतीजी गीता साधना जी की शिमला निवासी ननद सोनिया , साधना जी के कसिन विजय भावनानी उनके बेटे यशीष भावनानी मौजूद थे। वहीं जानी मानी उद्घोषिका तबस्सुम , करण जौहर की माँ श्रीमती हीरू जौहर लघु फिल्म निर्माता टी मनवानी आनंद, बीते दौर की अभिनेत्री शम्मी , दीप्ति नवल आदि मौजूद थे। पंडित जी मन्त्र आदि पढ़े। आधा घंटे के बाद अपने दौर की इस विलक्षण अभिनेत्री का पार्थिव शरीर विद्युत शव दाह कक्ष में ले जाया जाता है। सभी मौजूद लोगों की आँखों से आसुंओ की धारा बह निकलती है। बाद में साधना जी के बंगले पर फिर से हेलेन जी और सारिका और अन्य कई अभिनेत्रियों का आना- जाना लगा रहता है। मैं नम आंखों से लौटता हूं । साधना जी के दौर को याद करते हुए । साधना जी को मरणोपरांत ही सही पद्म श्री या पद्म भूषण दिया जाना चाहिए। उनके अभिनय के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान और नए प्रतिमान रचकर फिल्म उद्योग की दिशा बदलने के लिए।
०अशोक मनवानी ।
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